परिचय
शहीद भगत सिंह भारत के इतिहास में एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनकी कहानी हर भारतीय के दिल को छू जाती है। उनका जीवन देशभक्ति, साहस और बलिदान का जीवंत उदाहरण है। मात्र 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी और अपने बलिदान से अमरता प्राप्त की। उनका नाम आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
मैं जोर देकर कहता हूँ कि मेरे अंदर भी अच्छा जीवन जीने की महत्वकांक्षा और आशाएं हैं लेकिन मैं समय की माँग पर सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ यही सबसे बड़ा त्याग है ~ शहीद भगत सिंह
प्रारंभिक जीवन और जन्म
भगत सिंह का जन्म 27 या 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गांव में हुआ था। उनका परिवार एक सिख परिवार था, जिसमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित सिंह दोनों स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे और ग़दर पार्टी के सदस्य थे। यह पार्टी ब्रिटिश शासन को भारत से निकालने के लिए अमेरिका में स्थापित की गई थी।
भगत सिंह के बचपन से ही उनके घर में देश के लिए कुछ करने का जोश था। 1916 में जब वे लाहौर के डीएवी विद्यालय में पढ़ते थे, तो उन्होंने लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों से प्रेरणा ली।
शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी नारे (Slogans by Shaheed Bhagat Singh)
इंकलाब ज़िंदाबाद!
अर्थ: क्रांति अमर रहे!
यह भगत सिंह का सबसे प्रसिद्ध नारा है, जिसे उन्होंने अदालत में और असेंबली में बम फेंकने के बाद भी बुलंद किया।
साम्राज्यवाद का नाश हो!
अर्थ: Down with imperialism!
यह नारा अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों और शोषण के खिलाफ विरोध में दिया गया।
जय हिंद!
राष्ट्रप्रेम का यह नारा स्वतंत्रता संग्राम में अनेक क्रांतिकारियों द्वारा बोला गया और भगत सिंह ने भी इसे गर्व से अपनाया।
हमें उस क्रांति की ज़रूरत है जिसमें शोषणमुक्त समाज का निर्माण हो!
यह नारा भगत सिंह के उस दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय भी ज़रूरी था।
ज़िंदाबाद मजदूर-किसान!
भगत सिंह मजदूरों और किसानों के हक़ की लड़ाई के पक्षधर थे और उन्होंने उनके समर्थन में यह नारा दिया।
मैं नास्तिक हूँ – क्योंकि मैं इंसान की शक्ति में विश्वास करता हूँ!
यह नारा उनके वैचारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है कि वे कर्म और तर्क में विश्वास रखते थे।
क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है!
यह विचार-प्रधान नारा भगत सिंह की विचारधारा का सार है।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ, जिसमें ब्रिटिश सेना ने निर्दोष महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर गोलियाँ चला दीं। उस समय भगत सिंह केवल 12 साल के थे, लेकिन इस हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत और देश की आज़ादी की चाह को और मजबूत कर दिया। उन्होंने उस स्थान की मिट्टी संजो कर अपने साथ रखी और जीवनभर उसे एक निशानी की तरह रखा।
शिक्षा और क्रांतिकारी गतिविधियाँ
1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़कर सक्रिय क्रांतिकारी बन गए। हालांकि गांधीजी ने 1922 में आंदोलन को बंद कर दिया, जिससे भगत सिंह निराश हुए। उन्होंने अहिंसा में विश्वास खो दिया और यह महसूस किया कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता का एकमात्र मार्ग है।
लाहौर के राष्ट्रीय विद्यालय में उनकी शिक्षा के दौरान वे भगवती चरण वर्मा, सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। वहाँ से उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों का ज्ञान मिला और उन्होंने कई क्रांतिकारी संगठनों में भाग लिया।
नौजवान भारत सभा और हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ
भगत सिंह ने पंजाब में क्रांति के संदेश को फैलाने के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ नामक संगठन बनाया। 1928 में चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर उन्होंने ‘हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र स्थापित करना था।
लाला लाजपत राय की मृत्यु और बदला
1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजे गए साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय पर पुलिस ने बेरहमी से लाठीचार्ज किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह ने इस कृत्य का बदला लेने का संकल्प लिया और ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट को मारने की योजना बनाई। हालांकि उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को मार दिया। इस घटना के बाद भगत सिंह को लाहौर छोड़कर भागना पड़ा।
केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंकना
1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानूनों का विरोध करने के लिए केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंका। यह बम किसी को घायल करने के लिए नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान खींचने के लिए था। उन्होंने वहां से भागने से इनकार कर दिया और गिरफ्तार हो गए।
मुकदमा, गिरफ्तारी और फाँसी
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर हत्या और अन्य आरोप लगाए गए। 7 अक्टूबर 1930 को उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। बावजूद इसके देश भर में उनकी फाँसी के खिलाफ विरोध हुआ, पर ब्रिटिश सरकार ने 23 मार्च 1931 को उन्हें फाँसी दे दी।
फाँसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने डटकर सामना किया और देशभक्ति के गीत गाए। उनकी अंतिम इच्छाओं और विचारों से उनकी महानता झलकती है।
व्यक्तित्व और विचारधारा
भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, वे समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जाति, धर्म और भाषा की दीवारों को तोड़ने की बात कही। वे हिंदी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी और बंगाली भाषाएँ जानते थे। वे समाजवाद के पक्षधर थे और मजदूरों के अधिकारों के लिए भी लड़ते थे।
जेल में उन्होंने कई लेख लिखे, जिनमें वे स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक न्याय पर भी जोर देते थे। उनका कहना था कि उनकी शहादत से भारतीय जनता जागेगी और अन्याय के खिलाफ खड़ी होगी।
शहीद भगत सिंह की विरासत
भगत सिंह की कहानी केवल उनके जीवन और मृत्यु की नहीं है, बल्कि उनकी सोच और आदर्शों की भी है। आज भी वे युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। उनका त्याग, साहस और देशभक्ति के लिए समर्पण भारत के हर नागरिक के दिल में अमिट है।
उनके नाम पर पंजाब का एक जिला शहीद भगत सिंह नगर के नाम से जाना जाता है। उनकी याद में कई स्मारक और संस्थान बने हैं। वे आज भी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोगों के लिए आज़ादी के प्रतीक हैं।
निष्कर्ष
शहीद भगत सिंह ने दिखाया कि देश की आज़ादी के लिए कोई भी बलिदान छोटा नहीं होता। उनकी कहानी यह सिखाती है कि सत्य और न्याय के लिए लड़ाई हमेशा जारी रहनी चाहिए। उनका जीवन, बलिदान और विचार भारत के इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय हैं।
जय हिन्द, जय भारत।
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